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Sunday, December 22, 2024

सिख वास्तुकला पर आधारित तीन सत्रो का ‘सिख आर्किटेक्टचर सिंपोज्यिम’ हुआ सम्पन्न

पंजाब 21 सितंबर (न्यूज़ हंट )- अमृतसर, सिख वास्तुकला और विरासत के अनुसंधान (रिसर्च), प्रकाशन (पब्लिकेशन) डाक्यूमेंटेशन और सरंक्षण (कनजरवेशन) के लिये वल्र्ड हैरिटेज फंड की तर्ज पर सिख हैरिटैज फंड बनाने के लिये सिख संस्थानों, व्यापारियों और सरकारी संगठनों को एकजुट की आवश्यकता है। यह भाव विशेषज्ञों द्वारा मंगलवार को सिख वास्तुकला पर अधारित तीन सत्रों पर वर्चुअल रुप से आयोजित हुई सिख आर्किटेक्चर सिंपोज्यिम के अंतिम दिन प्रकट हुये जिसमे भारत और पाकिस्तान के लगभग एक हजार से भी अधिक वास्तुकार मंथन कर रहे थे। साकार फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस संगोष्ठि को सिख चैंबर आॅफ काॅमर्स द्वारा समर्थन प्राप्त था जिसे पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा था। संगोष्ठी के संयोजक सुरेन्द्र बाहगा ने आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुये प्रतिनिधियों को स्वागत किया।

दिल्ली की जानी मानी आर्किटेक्ट डाॅ ज्योति पांडेय ने ‘माॅडर्नाईजिंग कोलोनियल पंजाब’ विषय पर बोलते हुये कहा कि तेजी से आधुनिक होते जा रहे कोलोनियल पंजाब की बैकग्राउंड के उलट, यह चर्चा कपूरथला स्टेट के शासक महाराजा जगतजीत सिंह के स्थापत्य कारनामों की बखूबी उजागर करती है। यह उस पहलू पर भी फोकस करती है जिसमें सिख पैटर्न द्वारा अपनी मुस्लिम प्रजा के लिये मस्जिदें बनवाई गई जो कि मानवतावाद की एक उत्साही भावना को जाहिर करता है। कपूरथला की जामी मस्जिद इस बात का प्रमाण है कि उनके पैटर्न वास्तव में अपने समय के लिये विशेष थे।

‘सैक्रेड आर्किटेक्टचर ऑफ गुरुद्वाराज‘ विषय पर महाराष्ट्र स्थित डाॅ कीर्ति भोंसले और आर्किटेक्ट कुलदीप कौर भाटिया ने समूचे विश्व के मॉडर्न गुरुद्वारों से अवगत करवाया।

अंतिम प्रेजेंटेशन में करतारपुर साहिब कॉरिडोर परियोजना को डिजाइन करने नई दिल्ली से आमंत्रित प्रो चरणजीत शाह ने बताया कि कोरिडोर परिसर ‘खंड’ पर आधारित गुरु नानक के मिशन को समर्पित है, जो शांति, सद्भाव और युनिवर्सल एकता का संकेत देता है। कला, वास्तुकला, इंटीरियर, डिस्पले और लैंडस्केप को एकीकृत करने का समग्र दृष्टिकोण निर्जीव ईंटो और कंक्रीट को जीवांत करता है और आसपास के माहौल में एक नई स्फूर्ति प्रदान करता है।

साकार फाउंडेशन के संस्थापक आर्किटेक्ट सुरिन्द्र बाहगा ने तीनों सत्रों का सारांक्ष देते हुये कहा कि सभी विशेषज्ञों का मत था कि हमें वास्तुकला में लुप्त हो रही सिख विरासत को बचाये रखने की जरुरत हैं जिसमें आर्किटेक्ट बिरादरी को अहम जिम्मेवारी लेनी होगी। उन्होंने फंड के गठन पर बल दिया और कहा कि वे एकजुट होकर व्यापारी वर्ग, सिख संगठनों और विभिन्न सरकारों के साथ इस मुद्दे को उठायेंगें।

समापन सत्र में नई दिल्ली स्थित स्कूल आॅफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर की ऐसोसियेट प्रोफेसर डाॅ आरती ग्रोवर ने कहा कि समकालीन सिख वास्तुकला नई तकनीकों, मैटिरियल्स और नई जीवन शैली को अपना रही है जिसे ओर अधिक बढ़ावा मिलना चाहिये।

इस दौरान आर्किटेक्ट रमनीक घड़ियाल, आर्किटेक्ट दीपिका शर्मा, डाॅ अतुल सिंगला, मौशे सैफदी आदि ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किये।

कार्यक्रम के अंत में आर्किटेक्ट जसकीरत सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया। इन तीनों सत्रों में उत्तरी भारत के आठ आर्किटेक्ट संस्थानों के छात्रों ने भाग लिया था जो कि संबंधित क्षेत्र के अनछुए पहलुओं से अवगत हुये। कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्तर के संगठनों जैसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स, चंडीगढ और पंजाब इकाई, फायर एंड सिक्योरिटी एसोसिएशन आॅफ इंडिया, ऐसोचैम जेम, आशरे आदि का भी सहयोग प्राप्त हुआ।

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