होशियारपुर, 7 अगस्त ( न्यूज़ हंट )- कण कण में व्यापक प्रभु परमात्मा को जाना जा सकता है और जानकर ही इसकी भक्ति संभव है। यह शिक्षाएं प्रत्येक युग में अनेक संतों द्वारा दी गई है। उक्त विचार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने वर्चुअल समागम के दौरान प्रकट किए। उन्होंने फरमाया कि हर एक में प्रभु का दर्शन करके बोली-भाषा, खान-पान और रहन-सहन आदि के भेद भावो से ऊपर उठकर ही एक उत्तम मानव की भांति जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने फरमाया कि एेसी नैतिक और आदर्श विचारधारा समाज में, विद्यालय इत्यादि में भी सीखने को मिल जाती हैं परन्तु इनका लाभ तभी है जब इन्हें मानकर जीवन में उतारा जाए। आज कल ओलंपिक खेल चल रहे हैं। खिलाडिय़ों को सालों की मेहनत और लगन को केवल कुछ ही पलों की परीक्षा में साबित करना होता है। एेसे ही मनुष्य के समक्ष जब चुनौती पूर्ण समय आता है तब उसके विश्वास और चरित्र की परीक्षा होती है। यदि हम नित्य सत्संग करते हुए अपने शब्दों और कर्मों को संवारने का प्रयत्न करते रहेंगे तब विषम परिस्थितियों में भी हमारा किरदार, विश्वास, भक्ति और नेकी से भरपूर ही होगा । अच्छी बातों को केवल एक कान से सुनकर दूसरे कान से नहीं निकाल देना है, अपितु उन्हें जीवन में ढालकर उनका लाभ भी प्राप्त करना है उन्होंन आगे फरमाया कि अक्सर कहा जाता है कि स्वभाव बदलना बहुत ही कठिन है किन्तु ज्ञान और संतों के संग से यह संभव है। मन जब बुराई की ओर जाए या दूसरों को गिराने की ओर जा रहा हो तब उस पर हमने विजय प्राप्त करनी है और दूसरों को उठाने का काम करना है। दूसरों के साथ भी हम वैसा ही व्यवहार करें जिसकी अपेक्षा हम दूसरों से रखते हैं। कई बार रिश्ते छोटी छोटी बातों से टूट जाते है। जिस बात पर मन मुटाव हुआ उसका विश£ेषण करें तो पता चलेगा कि छोटी बात को अहंकार के कारण बड़ा बना दिया गया । हम आशा करते हैं कि परमात्मा हमारे हर अपराध के लिए हमें क्षमा कर दें और यह सोचें कि क्या हम भी दूसरों को एेसे ही क्षमा कर देते हैं? हमें बस औरों को क्षमा करके एवं उनसे क्षमा मांगकर आगे की ओर बढऩा है जिससे रिश्ते बरकरार रहें। उन्होंने फरमाया कि यदि कुछ भी मन अनुसार नहीं हुआ तब भी उसे ईश्वर का वरदान समझकर जिया जाए क्योंकि अंत में हम यही पायेंगे कि जो हुआ उसमें हमारी बेहतरी थी। विवेक, विशालता, दया और प्रेम अपनाते हुए और सेवा, सुमिरन, सत्संग करते हुए सभी भक्ति करते चले जाएं। ऐसी ही प्रार्थना निरंकार से है।