होशियारपुर, 18 अगस्त ( न्यूज़ हंट )- सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की अपार कृपा से मुक्ति पर्व दिवस व्रचुअल रूप से मनाया गया। इस दौरान व्रचुअल समागम के दौरान प्रवचन करते हुए निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज फरमाया कि आजादी सभी को पसंद है चाहे वह विचारों की आजादी हो या फिर कर्मों की आजादी। किन्तु हम जिस भी देश में रहते हैं हमें वहां के नियम और कानूनों की सीमा में रहकर यह आजादी निभानी होती है। यदि हम रूह की आजादी की बात करें तो हमें यह देखना होगा कि इस आजादी का हम कैसे प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने फरमाया कि हमारे सतगुरु और संतों को जिन्हें हमने आज याद किया,उन्हें बहुत तप एवम त्याग करना पड़ा। उनके इस विशाल और दिव्य जीवन के चलते ही उनका यह जीवन भी मुबारक रहा और मृत्यु भी। इसलिए मुक्ति पर्व के अवसर पर हम उनके जीवन को उत्सव के रूप में स्मरण कर रहे हैं। आत्मा जो हमारी सदा रहने वाली पहचान है। इस बेरंगे, बेहद, रमे हुए राम, निरंकार प्रभु का रूप है। शरीर में रहते हुए ही हम इसके एहसास से रिहा हो सकते है। ब्रह्मज्ञानी मुक्त होकर जीवन जीते हैं। शरीरिक पहचान कुछ देर की है परन्तु आत्मिक पहचान तो सदैव रहने वाली है इसलिए इसे जानकर इसमें स्थित रहना ही मुक्ति है। सभी संतों, महापुरुषों ने इस सत्य को सदैव ही दोहराया और इसका आसरा भी लिया। यदि हम जगत माता जी की बात करें, राजमाता जी की बात करें या फिर सत्गुरु माता सविंदर हरदेव जी का जिक्र करें तो इन सभी ने महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण का प्रतीक बनकर मानवता की सेवा की। सभी ने ममता और करुणा से सेवा की और यह प्रमाणित किया कि नर हो या नारी सभी में एक ईश्वर का नूर विद्यमान है। आज अनेक भक्तों को भी स्मरण किया गया। सभी के नाम लेना तो संभव नहीं होगा और कई तो एेसे भी संत होंगे जिन्होंने चुप रहकर बगैर सामने आए उत्तम भाव से भक्ति निभाई। आज उन्हें भी स्मरण करने का दिन है। नए, पुराने सभी संत जिन्होंने अपना सारा जीवन सच्चाई की राह पर समर्पित कर दिया उन सभी का जीवन मुबारक है। सदैव यही अरदास की जाती है कि हमारा अंत सेवा करते हुए हो। कई संत तो सेवा करते हुए ही ब्रह्म में समा गए। कई अपने जीवन के अन्य कार्यों में तो लगे रहे किन्तु ध्यान इस निरंकार में ही लगा रहा। उनको भी अवश्य मुक्ति प्राप्त होगी। आज इन मुक्त आत्माओं से हम सभी ने प्रेरणा लेनी है जिन्होंने जीवन की हर परीक्षा को परमात्मा का आधार लेकर पार किया। कई बार यह अरदास की जाती है कि बिना परीक्षा के ही हम पास हो जाएं। ये पूर्ण शक्तिशाली समरथ परमात्मा हमारे साथ है फिर किसी परीक्षा से क्यों डरना? हम क्यों न यह अरदास करें कि हे परमात्मा! आप जो भी परीक्षा दो उसके साथ हमें अपना विश्वास और उस परिस्थिति से पार जाने की शक्ति एवम विवेक भी बक्शना।