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Friday, September 20, 2024

Navratri 2021 Day 2: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की होती है पूजा, पढ़ें आरती, मंत्र, कथा और भोग विधि

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता के इस अवतार का अर्थ तप का आचरण करने वाली देवी होता है। इनके हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी कहा गया है। मान्यता है कि जो इनकी पूजा करते हैं वो हमेशा उज्जवलता और ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं। तो आइए जानते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन कैसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, पढ़ें आरती, मंत्र कथा।

इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। फिर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मंदिर में आसन पर बैठ जाएं। फिर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें और उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं। साथ ही भोग भी लगाएं। कई जगह कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है तो उन्हें इसी का भोग लगाएं। फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मंत्रों का जाप करें। गाय के गोबर के उपले जलाएं और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें। साथ ही इस मंत्र का जाप करें- ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्‍यै नम:।।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग:

कई जगह कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है तो उन्हें इसी का भोग लगाएं। वहीं, मां को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है। ऐसे में पूजा के दौरान इनसे बनी फूलों की माला को मां के चरणों में अर्पित करें। वहीं, कई जगह यह भी कहा जाता है कि मां को चीनी, मिश्री और पंचामृत बेहद पसंद है, तो मां को इसका भोग लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न हो जाती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा:

जब मां ब्रह्मचारिणी देवी ने हिमालय के घर जन्म लिया था, तब नारदजी ने उन्हें उपदेश दिया था और उसके बाद से ही वो शिवजी को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं जिसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। देवी ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए थे। वे हर दुख सहकर भी शंकर जी की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। फिर कई हजार वर्षों तक उन्होंने निर्जल व निराहार रहकर तपस्या की। जब उन्होंने पत्तों को खाना छोड़ा तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की। उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है।

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